Sunday, November 11, 2012

जरुरत एक सम्मिलित कोशिश की


आज देश में  जो राजनैतिक माहौल  बना हुआ है उस पर  सीमाब अकबरबादी के शब्द याद आते हैं 
क्या जाने यह रहगीर* है, रहबर* है कि रहज़न*?
हम भीड़ सरे-राहगुज़र देख रहे हैं॥
पूछो मेरी परवाज़*का अन्दाज़ उन्हीं से।
यह लोग जो टूटे हुए पर देख रहे हैं॥ 
[राहगीर-यात्री ,रहबर-मार्गदर्शक  ,रहज़न -लुटेरा परवाज़ -उड़ान ]

श्री अरविन्द केजरीवाल से मेरी अपेक्षा खुलासों से अधिक  की है , मुझे डर है  की कहीं ये आरोपों की  नीति उन्हें एक और सुब्रमण्यम स्वामी बना दे ! जरुरत अब इस बात की है अरविन्द भविष्य की नीतियों का खुलासा करें और ये सिद्ध करें की मकसद यहाँ  सिर्फ हंगामा खड़ा करने का नहीं व्वयस्था  को बदलने का है ! आवश्यक है कि वो समझाएं, कि अभावों से क्रस्त आम आदमी तक shining इंडिया की रौशनी कैसे पहुंचेगी ? अब जरुरी है  की वो बताएं के गावों के विकास के लिए उनके पास क्या योजना है ? भ्रष्टाचार  का ये वायरस जो एक आम भारतीय की भीतरी सरचना में घुसा हुआ है उसका क्या इलाज़ है ? यह शिक्षा पद्दिती जो राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में पूरी तरह असफल रही है इसका क्या निदान है उनकी नज़र में ?    

अरविन्द को समझना होगा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग उनके नहीं खबर के साथ है  ,उन्हें कोशिश करनी होगी शिक्षित और संवेंदनशील लोगों को अपने साथ जोड़ने की , आज विवेकहीन भीड़ से दूरी बनाना  उतना ही जरुरी है जितना की एक बड़ा जनमत तैयार करने की !

यहाँ यह कहना जरुरी है की  समाज का एक बुद्धिजीवी वर्ग जो सिर्फ आलोचना करने में ही अपनी श्रेष्टता समझता है उसे ये समझना  होगा की  समस्या यहाँ शब्दों से हल नहीं होगी , जरुरत है  कुछ इमानदार कोशिशो की, गलतियाँ कोई भी निकल सकता है हिम्मत है तो आइये उन गलतियों को सुधारिए , अरविन्द को सलाम है की  IRS की अफसरी छोड़ उन्होंने एक पहल की ,आज अगर सरकारी तंत्र उनके विरुद्ध कोई सबूत  और तथ्य नहीं जुटा   पाया है  तो किस बुनियाद पर आप उनकी नीयत पर शक करते हैं ? कितने IIT स्नातक degree लेने के बाद मदर टेरेसा  के साथ काम  करने पहुंचते  हैं  ? सिर्फ उँगलियाँ उठाने से नहीं होगा अगर आपके पास एक बेहतर विकल्प है तो उसे सामने रखिये !  एक सजग  आलोचक होना अलग बात है और एक कुंठित cynic  होना दूसरी  !

अगर जय प्रकाश नारायण  सफल नहीं हुए तो और कोई भी सफल नहीं होगा क्या ये एक पूर्वाग्रह  नहीं  ? क्या हम ऐसा प्रजातंत्र deserve  नहीं करते जहाँ सरकार  सुचारू रूप से  कार्य करने के लिए चुनी जाये , प्रजा पर  राज करने के लिए नहीं  ! यह सचमुच दुखद है की हमने अपनी राजनीती का चेहरा एसा बना लिया है की वो किसी भी प्रतिभाशाली व्यक्ति को आकर्षित नहीं करता !दरअसल समाज का एक सुविधा-संपन्न वर्ग भूल रहा है कि एक भ्रष्टाचारमुक्तस्वस्थ समाज देश ही हरेक व्यक्ति की संपूर्ण सुरक्षा और सम्मान को संभव बना सकता है। कोई भी सख्त से सख्त अधिनियम पूरी सड़ांध का उपचार नहीं है। सवाल यहाँ कालीन से चिपकी गर्द के नहीं कीचड़  से सने पैरों के हैं ! व्यवस्था में आमूल परिवर्तन एक सामाजिक प्रक्रिया हैजिसका शंखनाद परिवार से ही संभव है। क्योंकि, समाज की मूलभूत  इकाई व्यक्ति है और जरुरत है ,उस व्यक्ति के आदमी के अन्दर के इंसान के जागने की , ताज भोपाली के खूबसूरत लफ्ज़ हैं 

मैं चाहता हूं, निज़ाम--कुहन बदल डालूं 
मगर ये बात, फ़क़त मेरे बस की बात नहीं
उठो-बढ़ो मेरी दुनिया के आम इंसानों
ये सबकी बात है, दो-चार-दस की बात नहीं

2 comments:

  1. सर,
    हम सभी भी उनसे ऐसी ही उम्मीद लगाए बैठे है और ना सिर्फ उम्मीद बल्की उनके साथ दिल से चलने को तियार है| अकेले केजरीवाल व्यवस्था को बदल नहीं पाएंगे| आवश्यकता है एक पूरी पीढ़ी की जो राजनीति से उठ कर राजनीति कर सके| आवश्यकता है एक पूरी पीड़ी की जो वोट बेंक से आगे बढ़ वोट दे सके| क्योंकी आवश्यकता है एक ऐसे भविष्य की जिसका भविष्य उज्जवल हो|

    (आप पंक्तियाँ बेहद सटीक लिखते है, उर्दू शेर मुझे तो समझ नहीं आते, अतः शब्दार्थ लिखने के लिए धन्यवाद)

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  2. प्रिय ऋषभ ,
    धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिए .....
    हाँ रास्ता आसन नहीं है मगर और और कोई विकल्प भी नहीं ...तंत्र के साथ जरुरत है मानसिकताओं को बदलने की जो बस सिर्फ खुद तक सीमीत हो कर रह गयी हैं .....कवि नीरज की पंक्तियाँ है।।।।बहुत सटीक बैठती है आज के परिवेश पर.....
    है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए
    जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए
    रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह
    अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
    फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
    जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
    छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
    आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए .....

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