Saturday, September 27, 2014

क्या हो शिक्षा का उधेश्य ?


गूगल व हिंदुस्तान , ने वेब पर हिंदी को बढावा देने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया था | इस प्रतियोगिता के लिए मैंने "शिक्षा : जीवनशैली या व्ययसाय ?" विषय पर यह लेख लिखा था |सौभाग्य से इसे पुरस्कृत  भी किया गया . अब क्योंकि KNOL गूगल द्वारा बंद किया जा रहा है इसे यहाँ पोस्ट कर दिया है |

सवाल से शुरू कर रहा हूँ, क्योंकि, इन सवालों में ही कहीं मेरी अज्ञानता छुपी है, और मेरी अज्ञानता का ज्ञान, मेरी प्रेरणा भी है व मेरे लिए शिक्षा का मूल मंत्र भी | शिक्षा कई रहस्यों से पर्दा हटाती है और इस प्रक्रिया में कई नए प्रश्नों को जन्म भी देती है | किसी भी तरह कि शिक्षा का आधारभूत ध्येय होना चाहिए, व्यक्ति का बौद्धिक विकास, जो एक मानव को प्रश्नों पर सोचने को बाधित करे, जो एक इंसान को तर्क व विचार से निर्णय लेना सिखाये. क्योंकि यह सिर्फ सोच है, जो एक मनुष्य को,एक प्रशिक्षित पशु से अलग करती है| एक शिक्षा पद्धिति  का मूल उधेश्य होना चाहिए,श्रेष्ठ नागरिक और अच्छे इंसान बनाना मगर दुर्भाग्य है कि हमारी शिक्षा पद्धिति  केंद्रित है सफल आदमी बनाने में , और बकौल ग़ालिब "आसान नहीं आदमी को भी इंसान होना"|

दृष्टि  घुमाकर देखिये , आपके चारों और आपको अशिक्षित डिग्रीधारी मिल जायेंगे | आज के युवक के वाहन चलाने के तरीके में , उसकी अभिव्यक्ति  ,विचारों और जीवन मूल्यों में आप हमारी शिक्षा पद्दति कि असफलता की  दुर्गन्ध को महसूस कर सकते हैं| जो शिक्षा,  जीवन का पर्याय  सफल होना और सफलता के मायने बस अमीर होना सिखाती हो, वो  हमें मशीनों को चलाने और बेचने वाले हाथ तो दे सकती है मगर उन मशीनों को बनाने वाला दिमाग नहीं दे सकती | हर मनुष्य जन्म से जिज्ञासु  होता है , मगर समय के साथ जिज्ञासा कि इतिश्री होती है, सब कुछ मान लेने के दुर्भाग्य में, या सब कुछ जान लेने के भ्रम में | यहाँ , मस्तिक्ष   की अँधेरी कन्दाओं में उलझे, विचारों के उलटे चमगादड शब्दों के जाल में आंदोलित तो होते हैं मगर उड़ नहीं पाते , और मानव , प्रकर्ति  की सबसे श्रेष्ठ कृति , इन परिस्थितयों के लिए, एक रोबोट कि तरह गलत प्रोग्रामिंग को जिमेदार बनाकर अपने हर कर्त्तव्य से विमुख हो जाता है |

समस्याओं से परे हट समाधान कि तरफ आना चाहूँगा, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट में स्नाकोतर उपाधियाँ लेने के बाद मैं एक शिक्षक हूँ,किसी बाध्यता के कारण नहीं , अपनी मर्जी से,अपनी ख़ुशी से, क्योंकि विद्यार्थियों के बीच बिताये गए घंटे मेरे जीवन को मायने देते हैं | मेरे अवलोकनों , प्रेक्षणों ,प्रयोगों ने जो अनुभव मुझे दिया है उसका निचोड़ ये है कि विषयों को शब्दों के लिए नहीं उनके आशय और अर्थ के लिए पढ़ाने  से लाभ होता है | विज्ञान सुन्दर है क्योंकि यह आपको एक इन्द्रधनुष या एक फूल कि ख़ूबसूरती का कारण समझाता है ,परिभाषाओं के दायरे से बाहर , और अंको और चिन्हों के परिचालन से ऊपर है वो ज्ञान जो किसी, क्यों ? क्या ? और कैसे ? को जन्म देता है | क्षेत्र कला का हो,वाणिज्य या विज्ञान का,  जरूरत है इस जिज्ञासा को जीवित रखने की, जररूत है हर मनुष्य को जीवन भर विद्यार्थी बनाये रखने की , और जरूरत हैं ज्ञान के साथ सवेंदेना को समन्वित करने की| गांधीजी ने भी "मानवता विहीन विज्ञान , अंतरात्मा विहीन आनन्द और चरित्र बिना ज्ञान" को समाज मूल बुराईयो में से बताया था | हमारी जरुरत है उष्मा गतिकी के नियमो के साथ ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को समझने की,व्रतीय गति के नियमों  के साथ अगर एक विद्यार्थी को शिक्षक , तेज़ी से मोड़ मुड़ने पर होने वाले खतरों को नहीं समझा पाए तो शिक्षक इसे अपनी असफलता ही माने | 

शिक्षा एक साझा प्रयास है, जिसे हम विद्यालयों के जिम्मे छोड़ कर मुक्ति नहीं पा सकते | किसी भी शिशु का पहला स्कूल है उसका घर और पहले शिक्षक उसके अभिभावक | एक बालक के अवचेतन मन पर अभिभावकों द्वारा दी गयी सलाह और उससे जनित प्रतिक्रिया उसके स्मृति पटल पर अंकित होती रहती है | एक व्यसक होने पर वो जीवन को अपने अनुभवों के आधार पर देखता है | हर बच्चा अपना जीवन अपने अभिभावकों के प्रति प्रेम से शुरू करता है, बड़ा होने पर वो उन्हें परखता है और कभी-कभी उन्हें क्षमा भी कर पाता है | आपकी प्रतिक्रियाएं , आपका पोषण एक बच्चे  के चरित्र के  निर्माण का खाका खींचते हैं | अपने शिशु  के पहले कदम किसी भी माता के लिए अविस्मर्णीय पल होते हैं।  लेकिन,  जब बालक चलाना सीखते समय गिरता है,  तो सब माताओं की प्रतिक्रिया एक सी नहीं होती | एक माता अपनी जगह खड़े रहकर अपने बालक को खुद तक आने को प्रेरित करती है जब वो बालक अपनी माँ तक पहुँचता है तब ही उसे दुलार मिलता है ऐसा करके उस अबोध के व्यकित्व में माँ एक बीज बोती है,कि किसी भी कार्य को समाप्त करने पर ही पुरुस्कार मिलता है | दूसरी माँ दौड़कर अपने बचे को गोद में उठाती है और जीवन में हमेशा दूसरों से मदद के अपेक्षा करना सिखाती है | तीसरी माँ, न सिर्फ बच्चे को उठाती है, पर उसके साथ फर्श को पीटकर उसे अपने बच्चे को गिरा देने का आरोप भी लगाती है, और यह बालक जीवन में अपनी हर गलती के लिए दूसरों को जिमेदार मनाता है.| 

जीवन के सबक संघर्ष से ही आते है , हमें अपने बच्चों  को बड़ा होने का मौका देना चाहिए | शत प्रतिशत अंको की अपेक्षा अमानवीय है | आप एक बच्चे  से गलती करने का हर मौका छीन कर उसे अनुभवों से वंचित करते हैं , क्या आपने कभी सोचा है की यह बालक जब वयस्क जीवन में कोई असफलता का सामना करेगा तो उस से कैसे उठ पायेगा| हमें समझना होगा की जीवन सदैव  सफल होने का नहीं  असफलता से उबरकर अपने ध्येय की तरफ चलते रहने का नाम है  | लौईस जौह्नन कहते हैं "मुझे अभिभावकों से मिलना इसलिए पसंद है क्योंकि उन्हें जानने के बाद बच्चों  को माफ़ करना आसान हो जाता है|

कुछ भी गलत न करने देने की इस प्रवृति ने ही "कोचिंग कल्चर " को एक व्वयसाय के रूप में विकसित किया है | आज नर्सरी में पड़ने वाला हर बच्चा  अब्दुल कलाम या सचिन तेंदुलकर बनाना चाहता है ,  इसलिए नहीं की वो उनकी उपलब्धियों से प्ररित है बल्कि इसलिये  की ऐसा  कहना उसे मैडम ने सिखाया है|  एक बुद्धिमान शिक्षक  वो है जो एक विद्यार्थी को सवालों की दहलीज तक लए। उसे तर्कसंगत तरीके से  सोचने का तरीका सिखाये ,मगर इन दिनों क्या सोचना है यह भी शिक्षक सिखाते हैं|  यह भूलकर कि शिक्षा घड़े को भरने का  नहीं,  बल्कि चिंगारी को जगाने का नाम है| 

ज्ञान के साथ सवेंदना का विकास ही संपूर्ण शिक्षा है | समस्याएँ कई है, और समाधान भी कई | जरुरत है एक पहल की,  जो बस आप कर सकते हैं अपने घर से, अपनी नयी पीड़ी को , एक श्रेष्ठ नागरिक बनाने की कोशिश के साथ , अगर हम आने वाली पीड़ियों  को एक सभ्य समाज देना कहते हैं , तो शिक्षा ही हमारी एक मात्र आशा भी है और एकमात्र हथियार भी।  दुष्यंत कुमार जी की ये  पंक्तियाँ  वो सब कहती हैं , जो आखिर में कहना चाहता हूँ :

यह लड़ाई, जो कि , अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी, पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है........


8 comments:

  1. मूलत ये पोस्ट मैने 2012 में पोस्ट की थी , इन दीनो एडिटिंग में जाने कैसे रेपोस्ट हुई और सारे कॉमेंट्स डीलिट हो गये ....सभी मित्रों से माफी के साथ बॅकअप से उन्हे फिर से पोस्ट कर रहा हूँ ...

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  2. Mr. Abishek Roy :-बहुत बढ़िया लेख. शायद हम भारतावाशियो को अभाव में जीने की आदत सी हो गयी है. इस आभाव को हम अपना दुर्भाग्य मान कर या तो अपने भाग्य को कोसते हैं, या चुप बैठ जाते हैं. स्वयं जब कुछ नहीं कर पते तो फिर हम इन अभावो से निकलने का जरिया अपने बच्चो को बनाते हैं, उनके ऊपर अनगिनत अपेक्षाएं डाल कर. इन अपेक्षाओं के बोझ तले दबकर बच्चो का नैशार्गिक विकाश नहीं हो पता और वो अपने अभिभावकोँ की ईक्षा पूर्ति का माध्यम बन कर रह जाते हैं और अक्सर असफलता की बली चढ़ जाते हैं.शिक्षा घड़े को भरने के बदले चिंगारी को जगाने का काम करे इसके लिए माताओं और पिताओं और शिक्षको को जागना ही होगा.

    अभिषेकजी , आपकी सटीक और सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद , ज़रूरत है अगति और प्रगती के मापदंड बदलने की ! आप जैसे युवा हमें आशा भी देते हैं और संबल भी , दुष्यांतजी की की क कविता है जो भावना को पूर्ण करती है ....
    मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे
    इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे
    फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
    अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आयेंगे ||
    रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
    आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आयेंगे
    हम मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
    हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे ||
    हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गये
    इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएँगे
    हम इतिहास नहीं रच पाये इस पीडा में दहते हैं
    अब जो धारायें पकडेंगे इसी मुहाने आयेंगे ||

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  3. shri PV Ariel :- No Doubt it’s a flourishing business now and every Dick and Harry is entered in this arena and minting money, the gullible parents of students are in a dilemma of where to find the right education for their children. It’s so sad to note that the political bigwigs are supporting from behind such looting institutions.Nicely Presented a serious issue here. Thanks for sharing this. Best wishes .Philip Ariel

    Thank so much for stopping by and taking time out to comment...
    Thank so much for stopping by and taking time out to comment.Political bigwigs get their share of booty so why will they object? It is for the parents to realize the meaning of education....Regards Sunil

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  4. Shri Vikas Gupta : बहुत बढ़िया लेख है. देश का दुर्भाग्य है शिक्षा व्यवसाय ही बन गया है!

    धन्यवाद विकास जी ...सच है ...

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  5. Shri Lalit kumar: आपका आलेख पढ़कर और आपके विचार जान कर बहुत अच्छा लगा सुनील भाई!
    Lalit Kumar http://www.dashamlav.com

    Thanks lalitji. ...sachmuch jis disha mein samaj ja raha use delhkar aur sochkar. ghabrahat bhee hoti hai aur gussa bhee aata hai. ...aapka protsahan bahut mayne rakhta hai mere liye...



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  6. Shri Patnaik : fabulous! Surprisingly similar things were always told to me by father who was a teacher a painter and a writer of well repute (mostly wrote for children and for adult education and was awarded by State Govt and Central Govts). I too had inclination towards, painting and arts in general but opted to study engineering just to secure my future. Those days (70ies)opportunities were negligible if you did not do Engineering or Medicine. Fortunately I can afford to ask my son to do whatever he likes to do and also have been able to give him values my father gave me. patnaik http://www.blogger.com/profile/05670985051893177511

    Dear Patnaikji ,Thanks for encouragement....I am sure you have passed on the values to your children that were rooted in you by your parents..... Yes times have changed and there are more opportunities available but the means must never be forgotten by this generation to reach the ends...because ..there is more to life than just success and there is more to success than money....


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  7. Shri Dinesh RAi Diwedi : सुनील जी, अच्छी पोस्ट है। आप के इन विचारों से सहमत...
    सुनील जी, अच्छी पोस्ट है। आप के इन विचारों से सहमति है। लगता है आपका और हमारा वैचारिक जगत बहुत दूर दूर नहीं है।ये टिप्पणियों पर पहरा क्यों वर्ड वेरीफिकेशन हटाइए।
    दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi http://www.blogger.com/profile/00350808140545937113

    धन्यवाद सर प्रोत्साहन के लिए , वेरिफिकेशन शायद सेट हुआ होता है अपने आप ....अब हटा दिया है ...

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  8. Shri Shiv Prakash YAdav : namaste "sunil sir "apne kya likha hai sir mind blowing maza a gya padh kr ap plz aise hi likhte jaiye ruko mt sir plz.apki sabse heart toching line "mother and child"ki batein.plz mai apke next blog ka wait kr rha hun.main fb account me add hun apke friend list me sorry usi ke through mai apke blog me aya hun,mai apke blog me gya sab padha apki language bahut satik aur saral hai.mai apke blog ka bahut bda fan ho gya hun sir plz ap apni blog jaldi publish plz sir.koi galti ho gyi ho mujhse to so sorry sir.
    shiv prakash yadav http://www.blogger.com/profile/00716065250442173741noreply@blogger.com

    Thanks Shiv prakashji ...apko pasand aaya jankar khushi hui .

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