गलियों के सब नाम मिटा दें
शहरों की पहचान मिटा दें
सड़क, दिशा के नाम छोड़ दें
बांटे ऐसी हर दीवार तोड़ दें
आओ, फिर ढूंढे मिल कर के
मुल्क ,शहर ,का कोना कोना
जहाँ भी एक स्वंतंत्र मन मिले
जहाँ भी एक अतृप्त मन मिले
चलने को संकल्पित तन मिले
बस इसी पते पे मेरा घर हो।
१५ अगस्त २०१३
अच्छा है!
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भाई....
Deletebohat khoob
ReplyDeleteThanks Aparnaji for encouragement..
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